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कठोपनिषद् के महत्वपूर्ण मंत्र

 द्वितीयं तृतीयं तम होवाच मृत्यवे त्वा ददामीति। (दोबारा-तिबारा पूछने पर पिता ने कहा, तुम्हें मृत्यु को देता हूं।) बहूनामेमि प्रथमो, बहूनामेमि मध्यम:।। (बहुत बार प्रथम श्रेणी में आता हूं, बहुत बार मध्यम श्रेणी का व्यवहार होता है।) तस्मात् प्रति त्रीन वरान् वृणीष्व। (इसलिए प्रत्येक रात्रि के बदले तीन वरदान मांग लो) त्रिकर्मकृत् तरति जन्म-मृत्यु। (तीन बार अनुष्ठान करने वाला जन्म-मृत्यु से तर जाता है।) एतमग्निं तवैव प्रवक्ष्यन्ति जनास- (इस अग्नि विद्या को लोग तुम्हारे नाम से जानेंगे) स्तृतीयं वरं नचिकेतो वृणीष्व। (हे नचिकेता अब तुम तीसरा वर मांगो) अन्यच्छ्रेयोSन्यदुतैव प्रेय- स्ते उभे नानार्थे पुरुषसिनीत:।। (अन्यत श्रेय उत तदैव प्रेय..) (श्रेय और प्रेय जो भिन्न-भिन्न फल देने वाले दोनों साधन मनुष्य को अपनी ओर खींचते हैं।) श्रेयश्च प्रेयश्च मनुष्यमेत- स्तौ सम्परीत्य विविनक्ति धीर:।  (श्रेय और प्रेय दोनों मार्ग मनुष्य के सामने आते हैं। धीर पुरुष दोनों को पृथक-पृथक जान लेते हैं।) तत्ते पदं संग्रहेण ब्रवीम्योमित्येतत्।।              (ब्रवीमी ओम इति एतत्) (वह पद तुम्हें संक्षेप में बतलाता हूं, व